बैतूल जिला मध्य प्रदेश के दक्षिण में स्थित एक जिला है जो की सतपुड़ा पर्वत श्रंखलाओ के मध्य में स्थित है। बैतूल जिले की सीमा दक्षिण में महाराष्ट से लगती है।
बैतूल जिले का इतिहास काफी काम लोगो को पता है, एसा शायद इसीलिए भी की क्युकी इसके इतिहास के बारे में ज्यादा कुछ लिखा नहीं गया है।
बैतूल एक आदिवासी बहुल जिला है , यहाँ पर लगभग 60 % आदिवासी निवास करते है. इस कारन यहाँ की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा गोंडी है।
Betul District Map (Source: Google Map) |
बैतूल जिले में मराठी बोलने वाले लोगो की भी काफी ज्यादा संख्या है। यहाँ बोलने वाली मराठी भाषा स्टैण्डर्ड मराठी भाषा से काफी अलग है।
हम यह जानते है की किसी एक भाषा को अलग अलग जगह अलग -अलग तरीके से बोला जाता है। जिसे उस भाषा के प्रकार कह सकते है।
उसी तरीके से मराठी को भी पुरे महाराष्ट्र तथा देश में अलग अलग तरीके से बोलै जाता है। इसमें प्रमुख प्रकार है :-
खानदेशी, वर्हाडी , आदि।
नागपुर तथा उसके आसपास के क्षेत्रो में जिसे विदर्भ भी कहा जाता है वर्हाडी बोली जाती है
मध्यप्रदेश में दक्षिणी जिले जैसे छिंदवाड़ा , बैतूल, बड़वानी, सिवनी, बालाघाट आदि इन सभी में जो मराठी भाषा बोली जाती है वो भी वर्हाड़ी से मिलती जुलती ही है।
पर इन सभी जिलों में बोली जाने वाली मराठी में भी थोड़ा अंतर देखने को मिलता है।
बैतूल में मराठी मुख्यतः जिले के दक्षिणी भाग तथा जो क्षेत्र महाराष्ट्र के करीब है वहा अधिल बोली जाती है जिसमे मुलताई , प्रभात पट्टन, आठनेर , भैंसदेही, प्रमुख है।
इसके अलावा कई जाती समूह ऐसे है जिनमे परंपरागत रूप से यह भाषा बोली जाती है , उनमे प्रमुख जाती समूह है : कुनबी, महार, मांग, आदि ।
वैसे तो भारत में मराठी भाषा को बोलने वाले लोगो का प्रतिशत लगभग 7% है और इस भाषा पर किसी भी तरह से कोई खतरा दिखाई नहीं देता क्युकी महाराष्ट्र में इसको बढ़ावा देने के लिए सरकार पूरी कोशिश करती है।
परन्तु बैतूल में बोली जाने वाली मराठी भाषा पर अपना अस्तित्व बचाने का प्रश्न है।
आजकल इस भाषा को मराठी भाषी घरो में बच्चो को नहीं सिखाया जाता या यु कहे लोग अपनी इस भाषा के प्रति उतने जागरूक नहीं है जितना होना चाहिए। सरकार के द्वारा भी किसी भी तरीके की योजना नहीं चलाई जा रही।
इन सभी चुनौतियों के बावजूद इस भाषा धीरे धीरे हिंदी से विस्थापीत किया जा रहा हैं, जो की इस भाषा के लिए सबसे बढ़ा खतरा मन जा रहा है।
बैतूल में इस विशेष "मराठी" भाषा को बचाने के लिए सभी लोगो को आगे आना चाहिए तथा जितना हो सके अपने घरों में इसका उपयोग करना चाहिए ताकि आने वाली पीड़ी भी अपनी इस भाषाई विरासत के बारे में जान सके।
सरकार को भी चाहिए की उसे और भी क्षेत्रों में बोली जाने वाले वाली भाषाओ में संरक्षण की ओर कदम बढ़ने चाहिए।
Comments
Post a Comment